Thursday, 19 July 2012

आज यह दहलीज



आज यह दहलीज पार  कर ली मैंने ....
तोड़ दी  दुःख की दीवार आज मैंने,
देखा सामने  तो रास्तों  पे कांटे ....
मुड के देखा तो सबने रिश्ते काटे .
आगे चलूँ 
या रिश्ते जकडू....

दुनिया बदलू या घर पकडूँ  ,
मंज़र था भयानक सा....


                                                                                    

                                                                               -कृतिका पौराणिक 

                                                                                           12 'ब'


न साथ कोई अपना सा  ,

देख रही बस लुटते जहाँ  को ....

पूछ रही थी..हे  ईशवर..!! तुम कहाँ हो..??

तभी काँटों के बीच से निकल रहा रास्ता दिखा....

कांटे अब भी थे पार अब  साथ जज्बा था ,

दिखी रौशनी हुआ उजाला ....

छठा अँधेरा मिला सहारा,

साथ था नही कोई  मेरे अब भी ....

सहारा था  तोह था वह ईशवर अब भी ,

आगे चली ,अकेली चली और चलती गई....

रौशनी दिखी  मुस्कन मिली,

पैरों में कांटे और दिल में सुकून मिला ....

पर सबसे बढ़कर जो देखा वो था,

वो कांटे मिट रहे  थे और फूल खिल रहे  थे ....

और रिश्ते अब मेरी तरफ बढ़ रहे थे |



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