आज यह दहलीज पार कर ली मैंने ....
तोड़ दी दुःख की दीवार आज मैंने,
देखा सामने तो रास्तों पे कांटे ....
मुड के देखा तो सबने रिश्ते काटे .
आगे चलूँ या रिश्ते जकडू....
दुनिया बदलू या घर पकडूँ ,
मंज़र था भयानक सा....
-कृतिका पौराणिक
12 'ब'
न साथ कोई अपना सा ,
देख रही बस लुटते जहाँ को ....
0 comments:
Post a Comment