Tuesday, 24 July 2012
Thursday, 19 July 2012
आज यह दहलीज
आज यह दहलीज पार कर ली मैंने ....
तोड़ दी दुःख की दीवार आज मैंने,
देखा सामने तो रास्तों पे कांटे ....
मुड के देखा तो सबने रिश्ते काटे .
आगे चलूँ या रिश्ते जकडू....
दुनिया बदलू या घर पकडूँ ,
मंज़र था भयानक सा....
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Tuesday, 3 July 2012
उज्जैन
उज्जैन
-दिव्यंश खरे, VIII- ‘ब’
मुझे अच्छा लगा जो इस शहर में शोर बाकी है|
बसाहट है मुहल्लों में सुबह से शाम तक बोले
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